Poshan Taker and Contact App became a headache: पोषण टेकर और संपर्क एप बना आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के लिए सिरदर्द

नेटवर्क न होने से एप नहीं चलते, आंगनवाड़ी केंद्र संचालन में दिक्कतें
 बैतूल। महिला एवं बाल विकास विभाग में आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं की परेशानी लगातार बढ़ती जा रही है। पहले पोषण टेकर एप की दिक्कतें झेल रही कार्यकर्ताओं को अब संपर्क एप का भी बोझ लाद दिया गया है। नेटवर्क की समस्या, खराब क्वालिटी के मोबाइल और बिना किसी प्रशिक्षण के काम करने का दबाव झेल रही आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को अधिकारियों की धमकियों का भी सामना करना पड़ रहा है।
यह आरोप लगाते हुए आंगनवाड़ी कार्यकर्ता एवं सहायिका एकता यूनियन बैतूल जिला अध्यक्ष सुनीता राजपाल ने बताया कि सरकार की नीति के तहत आंगनवाड़ी केंद्रों की गतिविधियों को मोबाइल एप के जरिए अपडेट करने के निर्देश दिए गए थे। पहले पोषण टेकर एप लागू किया गया, लेकिन विभाग ने जो मोबाइल खरीदे, वे कुछ ही दिनों में खराब होने लगे। कार्यकर्ताओं ने विरोध किया, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। उस समय प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के पास महिला एवं बाल विकास विभाग का प्रभार था। इस मोबाइल खरीद में बड़ा घोटाला हुआ था, जिस पर काफी हंगामा हुआ, लेकिन मामला दबा दिया गया।
अब एक और नया झंझट खड़ा हो गया है। बिना किसी ठोस समाधान के सरकार ने संपर्क एप लागू कर दिया। पहले से ही खराब क्वालिटी के मोबाइल और नेटवर्क न होने की समस्या झेल रही कार्यकर्ताओं को अब और परेशान किया जा रहा है। विभाग ने उन्हें नए और अच्छे मोबाइल भी नहीं दिए।
आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को महिला एवं बाल विकास विभाग के अलावा पंचायत विभाग, स्वास्थ्य विभाग और निर्वाचन विभाग में भी काम दिया जाता है। यहां तक कि जब मुख्यमंत्री प्रदेश के दौरे पर होते हैं तो उनकी सभाओं में भीड़ जुटाने के लिए बुलाया जाता है। इनके पास न तो शासकीय अवकाश होता है और न ही कोई अतिरिक्त सुविधा।
अब पोषण टेकर और संपर्क एप पर काम न कर पाने की स्थिति में अधिकारियों द्वारा कार्यकर्ताओं को धमकियां दी जा रही हैं। सेवा समाप्त करने और मानदेय काटने की धमकी आम हो गई है। ग्रामीण इलाकों में नेटवर्क न होने से एप नहीं चलते, लेकिन इसका खामियाजा कार्यकर्ताओं को भुगतना पड़ रहा है।
सुनीता राजपाल का आरोप है सरकार महिला सशक्तिकरण का ढिंढोरा पीट रही है, लेकिन हकीकत में आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं का शोषण किया जा रहा है। कई विधवा और गरीब महिलाएं मजबूरी में कम वेतन में यह काम कर रही हैं, लेकिन उन्हें सम्मान तक नहीं मिल रहा।

		

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