Kapkapiii Review:- ‘कंपकंपी’, शुक्रवार को सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है। ये एक हॉरर-कॉमेडी फिल्म है जो उम्मीद तो बहुत जगाती है, लेकिन अंत में निराशा ही हाथ लगती है। यह फिल्म दिवंगत निर्देशक संगीत सिवन की अंतिम पेशकश है और इसमें श्रेयस तलपड़े, तुषार कपूर और जाकिर हुसैन जैसे अनुभवी कलाकार मुख्य भूमिकाओं में नजर आते हैं। एक ओइजा बोर्ड, आत्मा का साया, रहस्य और कुछ हंसी के पल, ये सभी तत्व मौजूद हैं, लेकिन जैसा कि कई बार होता है, केवल विचार अच्छा होने से फिल्म नहीं बनती, उसे परदे पर ढंग से पेश करना भी जरूरी होता है। ‘कपकपी’ इस कसौटी पर खरा नहीं उतरती।
कहानी
फिल्म की कहानी मनु (श्रेयस तलपड़े) और उसके दोस्तों के इर्द-गिर्द घूमती है, जो एक ओइजा बोर्ड के जरिए अनामिका नाम की एक आत्मा को बुला बैठते हैं। शुरुआत में यह सब एक मजेदार खेल जैसा लगता है, लेकिन जल्द ही घटनाएं भयावह मोड़ लेती हैं। अजीब और अस्पष्ट चीजें उनके जीवन को प्रभावित करने लगती हैं। इसी बीच मनु का रहस्यमयी दोस्त कबीर (तुषार कपूर) एंट्री करता है, जो आत्मा के प्रकट होने के बाद उसके साथ रहने आता है। कथानक में एक दिलचस्प आधार है, लेकिन इसे जिस तरह से पेश किया गया है, वह बेतरतीब, असंगत और अंतत थकाऊ लगता है। कई घटनाएं बिना किसी लॉजिक के सामने आती हैं और दर्शक हर पल यह समझने की कोशिश करता है कि आखिर चल क्या रहा है।
निर्देशन और लेखन
निर्देशक संगीत सिवन की यह आखिरी फिल्म है, लेकिन यह उनके काम की कोई यादगार विदाई नहीं बन सकी। स्क्रिप्ट में स्पष्टता की कमी है और पटकथा इतने सबप्लॉट्स में उलझ जाती है कि मुख्य कहानी धुंधली हो जाती है। फिल्म एक रोमांटिक कॉमेडी का रीमेक है, लेकिन इसे हॉरर में ढालने की कोशिश में इसकी आत्मा ही खो गई है। दृश्यों के बीच कोई स्पष्ट ट्रांज़िशन नहीं है, जिससे यह तय करना मुश्किल हो जाता है कि एक सीन खत्म कहां होता है और अगला शुरू कहां से। कई बार फिल्म यूं लगती है जैसे निर्माताओं ने तमाम आइडिया एक दीवार पर फेंक दिए हों, इस उम्मीद में कि शायद कोई एक जम जाए।
‘कंपकंपी’ एक ऐसी फिल्म है जो चाहती है कि दर्शक हंसे भी और डरे भी, लेकिन अंत में ये दोनों ही भावनाएं अधूरी रह जाती हैं। फिल्म का पहला भाग और दूसरा भाग मानो दो अलग-अलग फिल्मों की तरह हैं। बीच में कई नई कहानी रेखाएं अचानक शुरू हो जाती हैं और फिर बिना किसी निष्कर्ष के गायब हो जाती हैं। इस फिल्म में अगर कुछ है तो वह है पोटेंशियल, एक अच्छे विचार का, जो सही तरह से सामने नहीं आ सका है। फिल्म में कई बार आपको लगता है कि अब कुछ रोचक होने वाला है, लेकिन हर बार वह उत्सुकता अधूरी रह जाती है। न तो आत्मा की कहानी को गहराई से समझाया गया है और न ही पात्रों की मंशा को साफ तौर पर पेश किया गया है।
कैसा रहा स्टारकास्ट का परफॉर्मेंस
परफॉरमेंस के तौर पर सभी लोगों ने अपने अपने किरदार को बहुत खूबसूरती से निभाया है. श्रेयस तलपड़े गैंग के लीडर है, जो की खुद ही बहुत कन्फ्यूज्ड है. उनकी कॉमिक टाइमिंग परफेक्ट है. तुषार कपूर तो पहले से ही अपनी कॉमेडी के लिए ऑडियंस के बीच में काफी लोकप्रिय है. इस फिल्म में भी उन्होंने अपनी कॉमेडी का ऐसा तड़का लगाया है कि सबका दिल जीत लिया है. घर में ऊपर रहने वाली लड़कियों के रोले में सिद्धि इडनानी और सोनिया राठी भी सिर्फ ऑय कैंडी का काम नहीं कर रही है. वह दोनों अपनी अपनी एनर्जी से फिल्म में जान लाती है. सिद्धि को द केरला फाइल्स के बाद ऐसे कॉमिक अवतार में देखना ऑडियंस के लिए काफी बड़ा सरप्राइज होगा. बाकी दोस्तों ने भी फिल्म में अपने किरदार को ईमानदारी से निभाया है.
मॉडर्न भूतिया को बिल्कुल न करें मिस
फिल्म में कोई पुराने भूत प्रेत जैसा कुछ नहीं है. यह एक मॉडर्न भूतिया फिल्म है. ना ज्यादा डरावनी बस बहुत मजेदार और थोड़ा सा डर आपको पूरी तरह से एंटरटेन करेगा. अगर आप भी कभी अपने दोस्तों के साथ ऐसे एक घर में रह चुके हैं तो यह सभी किरदार और कहानी आपकी पुरानी यादो को ताजा जरूर करेगी. अगर इस वीकेंड कुछ हल्का फुल्का देखना चाहते हैं, तो फिल्म कपकपी देखने जरूर जाए. यह फिल्म आपके दिन भर के स्ट्रेस को खत्म कर देगी. आप सिनेमाघरों से हंसते हुए ही बाहर निकलकर आएंगे. ये फिल्म सिर्फ आपको हंसाने, चौंकाने और अपने दोस्तों की याद दिलाने आई है! पॉपकॉर्न लेकर बैठिए, और इस डरावने-मजेदार सफर का आनंद लीजिए!