Jagannath Rath Yatra :- जगन्नाथ रथ यात्रा हिंदू धर्म का एकमात्र ऐसा त्योहार है जब भगवान मंदिर से बाहर निकलकर आम लोगों के बीच आते हैं और उनके सुख-दुख में शामिल होते हैं। यह भगवान के पवित्र रूप को दर्शाता है, जहां वह बिना किसी भेदभाव के सभी को दर्शन देते हैं। रथ यात्रा के दौरान 3 रथ निकाले जाते हैं और ये तीनों रथ हर साल खास नीम की लकड़ी (दारू) से बनाए जाते हैं और इस रथ को बनाने की प्रक्रिया में कई महीने लगते हैं। यह पूरी यात्रा एक विशाल धार्मिक और सांस्कृतिक उत्सव का रूप ले लेती है, जिसमें लाखों श्रद्धालु भाग लेते हैं।
भगवान जगन्नाथ के रथका नाम नंदीघोष (या गरुड़ध्वज) है. यह तीनों रथों में सबसे बड़ा और भव्य होता है. इसका रंग मुख्य रूप से लाल और पीला होता है. इसमें 16 पहिए और ऊंचाई लगभग 42.6 से 45 फीट होती है. इसके शिखर पर गरुड़ देव का प्रतीक होता है. इसे दूर से ही इसके पीले और लाल रंग से पहचाना जा सकता है.
भगवान बलभद्र के रथ का नाम तालध्वज है. यह भगवान जगन्नाथ के बड़े भाई बलभद्र (बलराम) का रथ है, जो यात्रा में सबसे आगे चलता है. इसका रंग लाल और हरा होता है. इसमें 14 पहिए होते हैं और ऊंचाई लगभग 43.3 फीट (जो नंदीघोष से थोड़ा अधिक होता है). इस रथ के शिखर पर ताड़ (ताल) का वृक्ष बना होता है.
देवी सुभद्रा के रथका नाम देवदलन (या पद्मध्वज/दर्पदलन) है. यह भगवान जगन्नाथ और बलभद्र की बहन देवी सुभद्रा का रथ है, जो दोनों भाइयों के रथों के बीच में होता है. इसका रंग लाल और काला होता है. (कुछ जगहों पर लाल और नीला भी वर्णित है, जो देवी के शक्तिशाली और सुरक्षात्मक पहलुओं को दर्शाता है). इस रथ पर कमल का फूल बना होता है.
हर साल 15 दिन तक बीमार क्यों होते हैं भगवान जगन्नाथ, जानिए
जगन्नाथ रथ यात्रा की मान्यताएं गहरी धार्मिक, पौराणिक और सामाजिक होती हैं. पौराणिक मान्यता के अनुसार, एक बार भगवान जगन्नाथ की बहन सुभद्रा ने नगर भ्रमण करने की इच्छा व्यक्त की थी. अपनी बहन की इच्छा पूरी करने के लिए भगवान जगन्नाथ और बलभद्र के साथ रथ पर सवार होकर नगर भ्रमण पर निकले थे. यह यात्रा उसी घटना का प्रतीक है. तभी से ये जगन्नाथ रथ यात्रा निकालने की परंपरा चली आ रही है.